Class 10 Sanskrit Chapter 4 जननी तुल्यवत्सला (jananee tilyavatsala) Hindi & English Translation
जननी तुल्यवत्सला (jananee tilyavatsala) – पाठ-परिचय- कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास चारों वेदों और अठारह पुराणों के सम्पादक और रचयिता हैं। अतः वेदों का व्यसन करने के कारण वे वेदव्यास के नाम से प्रसिद्ध हैं। इन्हीं महर्षि वेद व्यास की महान रचना है- महाभारत। यह वृहदाकार होने के कारण विश्वकोश माना जाता है। महाभारत में ही कहा गया है
धर्मे चार्थे च कामे च मोक्षे च भरतर्षभ । यदिहास्ति तदन्यत्र, यन्नेहास्ति न तत् क्वचित् ।। प्रस्तुत पाठ महर्षि वेदव्यास विरचित ऐतिहासिक ग्रन्थ महाभारत के ‘वन पर्व’ से लिया गया है। यह कथा सभी प्राणियों में समान दृष्टि की भावना का बोध कराती है। इसका वांछित अर्थ है कि समाज में विद्यमान दुर्बल प्राणियों के प्रति भी माँ का वात्सल्य उत्कृष्ट ही होता है।
कश्चित् कृषकः बलीवर्दाभ्यां क्षेत्रकर्षणं कुर्वन्नासीत् । तयोः बलीवर्दयोः एकः शरीरेण दुर्बलः जवेन गन्तुमशक्तश्चासीत् । अतः कृषकः तं दुर्बलं वृषभं तोदनेन नुद्यमानः अवर्तत । सः ऋषभः हलमूढ्वा गन्तुमशक्तः क्षेत्रे पपात । क्रुद्धः कृषीवलः तमुत्थापयितुं बहुवारम् यत्नमकरोत् । तथापि वृषः नोत्थितः ।
हिन्दी अनुवाद:- कोई किसान दो बैलों से खेत जोत रहा था। उन बैलों में से एक शरीर से कमजोर था, तेज गति से चलने में असमर्थ था । अतः किसान उस कमजोर बैल को कष्ट देता हुआ हाँकता रहता था । हल वहन कर चलने में असमर्थ वह खेत में गिर गया। नाराज हुये किसान ने (उसे) उठाने के लिए अनेक बार प्रयत्न किया फिर भी कैल नहीं उठा।
भूमौ पतिते स्वपुत्रं दृष्ट्वा सर्वधेनूनां मातुः सुरभेः नेत्राभ्यामश्रूणि आविरासन् सुरभेरिमामवस्थां दृष्ट्वा सुराधिपः तामपृच्छत्-“अयि शुभे! किमेवं रोदिषि ? उच्यताम् ” इति । सा च विनिपातो न वः कश्चिद् दृश्यते त्रिदशाधिपः । अहं तु पुत्रं शोचामि तेन रोदिमि कौशिकः ।।
हिन्दी अनुवाद:- भूमि पर गिरे हुए अपने पुत्र (बैल) को देखकर सभी गायों की माता कामधेनु की आँखों में आँसू भर आये। कामधेनु की इस अवस्था को देखकर देवराज इन्द्र बोले-अरी कल्याणी। ऐसे क्यों रो रही हो कहो और वह (बोली) “हे देवराज इन्द्र तुम्हारा कोई अनादर (क्षय) दिखाई नहीं देता।” हे विश्वामित्र! मैं तो बेटे का शोक कर रही हूँ। अतः रो रही हूँ।
“भो वासव! पुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्वा अहं रोदिमि । सः दीन इति जानन्नपि कृषकः तं बहुधा पीडयति सः कृच्छ्रेण । भारमुद्वहति । इतरमिव पुरं वोढुं सः न शक्नोति। एतत् भवान् पश्यति न?” इति प्रत्यवोचत्। “भदे! नूनम् ! सहस्राधिकेषु पुत्रेषु सत्स्वपि तव अस्मिन्नेव एतादृशं वात्सल्यं कथम्?” इति इन्द्रेण पृष्टा सुरभिः प्रत्यवोचत् । यदि पुत्रसहस्रं मे, सर्वत्र सममेव मे । दीनस्य तु सतः शुक्रा पुत्रस्याभ्यधिका कृपा।।
हिन्दी अनुवाद:- “हे इन्द्र ! पुत्र की दीनता देखकर मैं रो रही हूँ। वह दोन है, ऐसा जानते हुए भी किसान उसे बहुत पीड़ा दे रहा है। वह कठिनाई से बोझ उठाता है। दूसरे बैल की तरह से वह धुर को वहन नहीं कर सकता है। यह आप देख रहे हैं न”। ऐसा उत्तर दिया।
“कल्याणि! नि:संदेह हजारों पुत्र होते हुए भी तुम्हारा इस पर इतना प्रेम (वात्सल्य) क्यों है? ऐसा इन्द्र के पूछने पर सुरभि ने उत्तर में कहा, यदि (यद्यपि) हजारों पुत्र हैं मेरे। वे सब जगह मेरे लिए समान हैं। हे इन्द्र ! पुत्र के दीन होने पर तो उस पर और भी अधिक कृपा होती है।
‘बहून्यपत्यानि मे सन्तीति सत्यम् । तथाप्यहमेतस्मिन् पुत्रे विशिष्य आत्मवेदनाममनुभवामि। यतो हि अयमन्येभ्यो दुर्बलः सर्वेष्वपत्येषु जननी तुल्यवत्सला एव । तथापि दुर्बले सुते मातुः अभ्यधिका कृपा सहजैव’ इति सुरभिवचनं श्रुत्वा भृशं विस्मितस्याखण्डलस्यापि हृदयमद्गवत् । स च तामेवमसान्त्वयत्- “गच्छ वत्से! सर्वं भद्रं जायेत ।”
हिन्दी अनुवाद:- यह सच है कि मेरे बहुत सी सन्तान हैं, फिर भी, मैं इस बेटे पर विशेष रूप से आत्मवेदना का अनुभव कर रही हूँ। क्योंकि यह औरों से कमजोर है, सभी सन्तानों पर माता का समान वात्सल्य होता है। फिर भी कमजोर बेटे पर अधिक महरबानी स्वाभाविक होती है। सुरभि के वचन सुनकर अत्यधिक आश्चर्यचकित इन्द्र का भी हृदय द्रवित हो गया (पिघल गया) और उसने उसे इस प्रकार सान्त्वना प्रदान की – ‘जाओ बेटी ! सब का कल्याण हो ।
अचिरादेव चण्डवातेन मेघरवैश्च सह प्रवर्षः समजायत । लोकानां पश्यताम् एव सर्वत्र जलोपप्लवः सञ्जातः । कृषकः हर्षातिरेकेण कर्षणविमुखः सन् वृषभौ नीत्वा गृहमगात् । अपत्येषु च सर्वेषु जननी तुल्यवत्सला । पुत्रे दीने तु सा माता कृपार्द्रहृदया भवेत् ।।
हिन्दी अनुवाद:– शीघ्र ही तेज वायु से मेघों की गर्जना के साथ वर्षा हो गई। लोगों के देखते-देखते सब जगह जलभराव हो गया। किसान अत्यन्त प्रसन्नता के साथ हल जोतना छोड़कर बैलों को लेकर घर चला गया। माता सभी सन्तानों को समान वात्सल्य (स्नेह) प्रदान करती है । परन्तु जो पुत्र दीन होता है उस माता को उस पुत्र पर तो अधिक कृपा से आर्द्र हृदय (कृपालु) होना चाहिए।
Sanskrit class 10 chapter 4 जननी तुल्यवत्सला Questions Answers
प्रश्न 1. एकपदेन उत्तरं लिखत
(क) वृषभः दीन इति जानन्नपि कः तम् नुद्यमानः आसीत् ?
उत्तरम् – कृषकः ।
(ख) वृषभः कुत्र पपात ?
उत्तरम् – क्षेत्रे ।
(ग) दुर्बले सुते कस्याः अधिका कृपा भवति ?
उत्तरम् – मातुः ।
(घ) कयो: एक शरीरेण दुर्बलः आसीत् ?
उत्तरम् – बलीवर्दयोः ।
(ङ) चण्डवातेन मेघरवैश्च सह कः समजायत ?
उत्तरम् – प्रवर्षः ।
प्रश्न 2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृत भाषया लिखत
(क) कृषकः किं करोति स्म ?
उत्तरम् – कृषकः क्षेत्रकर्षणं करोति स्म ।
(ख) माता सुरभिः किमर्थमश्रूणि मुञ्चति स्म ?
उत्तरम् – माता सुरभिः स्वपुत्रं भूमौ पतितं दृष्ट्वा नेत्राभ्याम् अश्रूणि मुञ्चति स्म ।
(ग) सुरभिः इन्द्रस्य प्रश्नस्य किम् उत्तरं ददाति ?
उत्तरम् – अहं तु पुत्रं शोचामि तेन रोदिमि ।
(घ) मातुः अधिका कृपा कस्मिन् भवति ?
उत्तरम् – दुर्बले सुते मातुः अधिका कृपा भवति ।
(ङ) इन्द्रः दुर्बल वृषभस्य कष्टानि अपाकर्तुं किं कृतवान् ?
उत्तरम् – इन्द्रेण दुर्बल वृषभस्य कष्टानि अपाकर्तुं वृष्टिः कृता ।
(च) जननी कीदृशी भवति ?
उत्तरम् – जननी तुल्यवत्सला भवति
(छ) पाठेऽस्मिन् कयोः संवादः विद्यते ?
उत्तरम् – पाठेऽस्मिन् सुरभीन्द्रयोः संवादः विद्यते।
प्रश्न 3. ‘क’ स्तम्भे दत्तानां पदानां मेलनं ‘ख’ स्तम्मे दत्तै समानार्थक पदैः कुरुत
‘क’ स्तम्भ ‘ख’ स्तम्भ
(क) कृच्छ्रेण (1) वृषभ:
(ख) चक्षुर्भ्याम् (2) वासवः
(ग) जवेन (3) नेत्राभ्याम्
(घ) इन्द्रः (4) अचिरम्
(ङ) पुत्राः (5) द्रुतगत्या
(च) शीघ्रम् (6) काठिन्येन
(छ) बलीवर्द: (7) सुता
उत्तराणि
‘क’ स्तम्भ ‘ख’ स्तम्भ
(क) कृच्छ्रेण (1) काठिन्येन
(ख) चक्षुर्भ्याम (2) नेत्राभ्याम्
(ग) जवेन (3) द्रुतगत्या
(घ) इन्द्रः (4) वासवः
(ङ) पुत्राः (5) सुता:
(च) शीघ्रम् (6) अचिरम्
(छ) बलीवर्द (7) वृषभ: