शतृ प्रत्यय (shatri pratyay) परिभाषा:
संस्कृत व्याकरण शास्त्र में शतृ प्रत्यय (shatri pratyay) एक कृत प्रत्यय का भाग है। जो कर्ता के रूप में वर्तमानकालिक भाव को प्रकट करने के लिए इसे धातुओं से जोड़ा जाता है। इससे बनने वाला शब्द उस क्रिया को करने वाले कर्ता का बोध करवाता है।
शतृ प्रत्यय: संस्कृत व्याकरण शास्त्र सूत्र:
धातोः शतृशानचौ लटि ॥ (अष्टाध्यायी 3.2.123) लट् लकार यानि वर्तमानकाल में प्रयुक्त क्रिया (धातु) से जब कर्ता के किसी रूप मे कोई कृदन्त शब्द बनाना हो, तब वहां शतृ प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है।katwa pratyayयहां आप संस्कृत का क्त्वा प्रत्यय का भी अध्ययन कर सकते हैं।
शतृ प्रत्यय के लक्षण:
- कर्तरि प्रयोग (कर्ता के लिए)
- वर्तमानकालिक अर्थ
- सकर्मक और अकर्मक दोनों धातुओं से बनता है
- बहुधा प्रत्यय “-न्त्” रूप में रूपांतरित होता है।
- इसके रुप तीनों लिंगों में चलते हैं। जैसे पठत्, पठन्ती, पठन्।
शतृ प्रत्यय के उदाहरण:
धातु | पुल्लिंग | स्त्रीलिंग | नपुंसकलिंग |
पठ् | पठत् | पठन्ती | पठन् |
वद् | वदत् | वदन्ती | वदन् |
हस् | हसत् | हसन्ती | हसन् |
चर् | चरत् | चरन्ती | चरन् |
चल् | चलत् | चलन्ती | चलन् |
खाद् | खादत् | खादन्ती | खादन् |
खेल् | खेलत् | खेलन्ती | खेलन् |
क्रिड् | क्रिडत् | क्रिडन्ती | क्रिडन् |
भू | भवत् | भवन्ती | भवन् |
धातु अर्थ शतृ प्रत्ययान्त रूप
पठ् (पढ़ना) पठन्त्
गम् (जाना) गच्छन्त्
खाद् (खाना) खादन्त्
हस् (हँसना) हसन्त्
धाव् (दौड़ना) धावन्त्
शतृ प्रत्यय का वाक्य में प्रयोग:
- पठन्तं बालकं अहं पश्यामि।
(मैं पढ़ते हुए बालक को देखता हूँ।) - गच्छन्ति छात्राः विद्यालयं।
(छात्र विद्यालय जा रहे हैं।) - धावन्तं श्वानं सिंहः अपश्यत्।
(दौड़ते हुए कुत्ते को सिंह ने देखा।) - हसन्तः बालाः क्रीडन्ति।
(हँसते हुए बच्चे खेल रहे हैं।) - खादन्तं गजं सिंहः दृष्टवान्।
(खाते हुए हाथी को सिंह ने देखा।)