हमने यहां Class 10 Sanskrit chapter 1 Suchi paryavaran ( शुचिपर्यावरणम् ) शेमुषी भाग 2 के प्रश्न उत्तर और हिंदी अनुवाद 2024-25 के लिए विद्यार्थी यहाँ से निशुल्क उपलब्ध करवाया गया हैं। कक्षा 10 संस्कृत के पाठ 1 अभ्यास के सभी प्रश्न उत्तरों के साथ साथ, पूरे पाठ का हिंदी अनुवाद भी दिया गया है ताकि किसी विद्यार्थी को अध्याय समझने में कोई दिक्कत न आए।
Class 10 Sanskrit Chapter 1 Suchi paryavaran ( शुचिपर्यावरणम्) हिंदी अनुवाद
पाठ-परिचय– निरन्तर बढ़ते हुए पर्यावरण प्रदूषण से आज सम्पूर्ण विश्व पीड़ित है । पृथ्वी, जल, वायु, आकाश एवं तेज सभी तो प्रदूषित हो गए हैं । मानव मन को शान्ति कहाँ मिले । विश्वव्यापी इसी समस्या से अनुप्रेरित होकर आधुनिक संस्कृत कवि हरिदत्त शर्मा ने यह कविता लिखी है । ‘शुचिपर्यावरणम्‘ उनके ‘लसल्लतिका‘ गीत-संग्रह में संकलित है ।
दुर्वहमत्र जीवितं जातं प्रकृतिरेव शरणम् । शुचि-पर्यावरणम् ॥ मनः शोषयत् तनुः पेषयद् भ्रमति सदा वक्रम् ॥ दुर्दान्तैर्दशनैरमुना स्यान्नैव जनग्रसनम् ॥ महानगरमध्ये चलदनिशं कालायसचक्रम् । शुचि……॥1॥
हिन्दी – अनुवाद:- इस संसार में जीवन दूभर हो गया है, अत: प्रकृति का शुद्ध- पर्यावरण ही (एकमात्र) सहारा है अर्थात् शुद्ध पर्यावरण की शरण में ही जाना चाहिए। (यह) लोहे का पहिया (यन्त्रजाल) दिन-रात महानगरों में चलता हुआ, मन का शोषण करता हुआ, शरीर को पीसता हुआ हमेशा टेढ़ा-मेढ़ा वक्रगति से घूमता है । इसके विकराल दाँतों द्वारा मानव का विनाश ही (किया जा रहा है) होगा । अतः शुद्ध पर्यावरण की शरण में ही जाना चाहिए ।
कज्जलमलिनं धूमं मुञ्चति शतशकटीयानम् । वाष्पयानमाला सन्धावति वितरन्ती ध्वानम् ॥ यानानां पङ्क्तयो ह्यनन्ताः, कठिनं संसरणम् । शुचि…… ॥ 2 ॥
हिन्दी – अनुवाद:- सैकड़ों मोटरगाड़ियाँ काजल-सा मलिन धुआँ अर्थात् काला काला धुआँ छोड़ती हैं। शोर करती हुई रेलगाड़ियों की पंक्ति: निरन्तर दौड़ रही है। वाहनों की पंक्तियाँ असीमित (अन्त न होने वाली) हैं इसलिए (रास्ते में) चलना भी दूभर हो गया है शुद्ध पर्यावरण की शरण में चलना चाहिए ।
वायुमण्डलं भृशं दूषितं न हि निर्मलं जलम् । कुत्सितवस्तुमिश्रितं भक्ष्यं समलं धरातलम् ॥ करणीयं बहिरन्तर्जगति तु ब हु शुद्धीकरणम् । शुचि…… ॥ 3 ॥
हिन्दी अनुवाद:- वायुमण्डल अत्यधिक दूषित हो गया है, क्योंकि पानी भी स्वच्छ नहीं है । खाने की वस्तुएँ भी दूषित पदार्थों से युक्त हैं । धरती मैली अर्थात् गन्दगीयुक्त है । अतएव बाह्य एवं आन्तरिक जगत् में अत्यधिक शुद्धीकरण करना चाहिए। शुद्ध पर्यावरण ही एकमात्र आश्रय है ।
कञ्चित् कालं नय मामस्मान्नगराद् बहुदूरम् । प्रपश्यामि ग्रामान्ते निर्झर-नदी- पयःपूरम् ॥ एकान्ते कान्तारे क्षणमपि मे स्यात् सञ्चरणम् । शुचि ……. ॥4॥
हिन्दी अनुवाद:- कुछ समय के लिए मुझे इस शहर से बहुत दूर ले चलो। गाँव की सीमा पर (मैं) जल से पूर्ण झरने और नदी को देख रहा हूँ। (उस) निर्जन शान्त वन में मेरा एक क्षण भी घूमना हो जाए अर्थात् मैं यहाँ क्षणभर घूमना चाहता हूँ। अतः शुद्ध पर्यावरण ही एकमात्र आश्रय है।
हरिततरुणां ललितलतानां माला रमणीया । कुसुमावलिः समीरचालिता स्यान्मे वरणीया ॥ नवमालिका रसालं मिलिता रुचिरं संगमनम् । शुचि ….. ॥5॥
हिन्दी अनुवाद:- हरे-भरे वृक्षों और सुन्दर बेलों की पंक्ति (और) वायु द्वारा हिलाई जाती हुई फूलों की पंक्ति मेरे लिए वरण करने योग्य होनी चाहिए। नवमल्लिका आम के वृक्ष के साथ मिलकर सुन्दर संगम प्राप्त कर रही है। अतः स्वच्छ वातावरण ही एकमात्र आश्रय है।
अयि चल बन्यो खगकुलकलरव गुज्जितवनदेशम् पुर-कलरव सम्भमितजनेभ्यो पृतसुखसन्देशम् ॥ चाकचिक्यजालं नो कुर्याज्जीवितरसहरणम् । शुचि….. 116 ||
हिन्दी अनुवाद- कुछ समय के लिए मुझे इस शहर से बहुत दूर ले चलो। गाँव की सीमा पर (मैं) जल से पूर्ण झरने और नदी को देख रहा हूँ। (उस) निर्जन शान्त वन में मेरा एक क्षण भी घूमना हो जाए अर्थात् मैं वहाँ क्षणभर घूमना चाहता हूँ । अतः शुद्ध पर्यावरण ही एकमात्र आश्रय है।
प्रस्तरतले लतातरुगुल्मा नो भवन्तु पिष्टाः । पाषाणी सभ्यता निसर्गे स्यान्न समाविष्टा ॥ मानवाय जीवनं कामये नो जीवन्मरणम् । शुचि ….. ॥ 7 ॥
हिन्दी अनुवाद:- लता, वृक्ष और झाड़ियाँ पत्थरों के तल पर नष्ट नहीं होनी चाहिए । अर्थात् पाषाणकालीन सभ्यता प्रकृति में समाविष्ट नहीं होनी चाहिए मैं मानव के जीवन की कामना करता हूँ, जीवन के नष्ट होने की नहीं । अतः शुद्ध पर्यावरण की शरण में जाना चाहिए ।
अभ्यास प्रश्नानामुत्तराणि
प्रश्न । एकपदेन उत्तरं लिखत-
(क) अत्र जीवितं कीदृशं जातम् ?
उत्तर दुर्वहम्।
(ख) अनिशं महानगरमध्ये किं प्रचलति ?
उत्तर कालायसचक्रम्।
(ग) कुत्सितवस्तुमिश्रितं किमस्ति ?
उत्तर भक्ष्यम्।
(घ) अहं कस्मै जीवन कामये?
उत्तर मानवाय।
(ङ) केषां माला रमणीया?
उत्तर हरिततरूणां ललितलतानाम् ।
प्रश्न 2 अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत –
(क) कविः किमर्थं प्रकृतेः शरणम् इच्छति ?
उत्तरम् – कवि महानगरस्य दुर्वहं जीवनं दृष्ट्वा तस्मात् भीतः शुद्धपर्यावरणाय प्रकृतेः शरणम् इच्छति ।
(ख) कस्मात् कारणात् महानगरेषु संसरणं कठिनं वर्तते ?
उत्तरम् – अहर्निशं लौहचक्रस्य सञ्चरणात् यानानां बाहुल्यात् च महानगरेषु संसरणं कठिनं वर्तते ।
(ग) अस्माकं पर्यावरणे किं किं दूषितम् अस्ति ?
उत्तरम् – अस्माकं पर्यावरणे वायुमण्डलं, जलं, भक्ष्यं, धरातलं च दूषितम् अस्ति ।
(घ) कविः कुत्र संचरणं कर्तुम् इच्छति ?
उत्तरम् – कविः ग्रामान्ते एकान्ते कान्तारे सञ्चरणं कर्तुम् इच्छति ।
(ङ) स्वस्थजीवनाय कीदृशे वातावरणे भ्रमणीयम् ?
उत्तरम् – स्वस्थजीवनाय शुचि-वातावरणे (पर्यावरणे) भ्रमणीयम् ।
(च) अन्तिमे पद्यांशे कवेः का कामना अस्ति ?
उत्तरम् – अन्तिमे पद्यांशे कवेः कामना अस्ति यत् निसर्गे पाषाणी सभ्यता समाविष्टा न स्यात् ।
प्रश्न 3. सन्धिं/सन्धिविच्छेदं कुरुत-
(क) प्रकृतिः + एव = प्रकृतिरेव ।
(ख) स्यात् + न + एव = स्यान्नैव।
(ग) हि + अनन्ताः ह्यनन्ताः ।
(घ) बहिः + अन्तः + जगति = बहिरन्तर्जगति ।
(ङ) अस्मात् + नगरात् =अस्मान्नगरात्।
(च) सम् + चरणम् = सञ्चरणम् ।
(छ) धूमम् + मुञ्वति – धूमं मुञ्चति ।
पश्न 4 अधोलिखितानाम् अव्ययानां सहायतया रिक्तस्थानानि पूरयत –
(क) इदानीं वायुमण्डलं भृशं प्रदूषितमस्ति ।
(ख) अत्र जीवनं दुर्वहम् अस्ति ।
(ग) प्राकृतिकवातावरणे क्षणं सञ्चरणम् अपि लाभदायकं भवति।
(घ) पर्यावरणस्य संरक्षणम् एव प्रकृतेः आराधना ।
(ङ) सदा समयस्य सदुपयोगः करणीयः ।
(च) भूकम्पित-समये बहिः गमनमेव उचितं भवति ।
(छ) यत्र हरीतिमा तत्र शुचि पर्यावरणम् ।
प्रश्न 5 (अ) अधोलिखितानां पदानां पर्यायपदं लिखत-
(क) सलिलम् – जलम्
(ख) आम्रम् – रसालम्
(ग) वनम् – काननम् (कान्तारम्)
(घ) शरीरम् तनुः (देहम्)
(ङ) कुटिलम् = वक्रम्
(च) पाषाणाम् = प्रस्तरम् ।